Friday, June 26, 2015

आज पहली बार

मैंने अपने मन की उलझन सुलझाने का फैसला कर लिया।  यदि  लिखने से मन हल्का हो तो कोई हर्ज़ नहीं लिखने में। मुझे मेरे बचपन के दिन याद हो आये और साथ ही कुछ बेहद कड़वे क्षण भी जिन्हे मैं शायद कभी भूली नहीं। हमारे परिवारों में बच्चों से कई बातें छुपाई जाती हैं और वही बातें जब बाहरी दुनिया हमें सिखाती है तो उसका स्वरुप घिनौना होता है और दर्दनाक भी।
हम सब बच्चे खेलने की एक निश्चित जगह थी जहां ज्यादा जगह थी और बम्बई के छोटे घरों में बच्चों को सब कुछ मिलता है सिवाय जगह के और यदि जगह मिले भी तो वो रईसजादों को ही नसीब होगी। हम जहां खेलते थे वहीँ थोड़ी दूरी पर एक घर था जिसमे एक परिचित महिला अपने मा -पिता के साथ रहती थी। उनकी उम्र भी लगभग 60 होगी लेकिन उनके पिता की घिनौनी हरकतों का उनकी उम्र से कोई रिश्ता ही नहीं था।  खेलने वाली छोटी लड़कियों को बुलाकर ये महोदय अपनी काम वासना की तृप्ति में उनसे अपने शरीर पर मसाज़ करवाते थे।  मेरा दिल तो करता था कि उनकी हड्डी पसली एक कर  देती लेकिन उम्र आड़े आ गयी और महोदय बच गए।  मैंने सिर्फ अम्मा से कहा हर ऐरे गैरे को इज़्ज़त देने की जरुरत नहीं , उनकी समझ में आया नहीं तो फिर साफ़ साफ़ कह बैठी, आइंदा मुझे उनके घर भेजना मत और उनको इज़्ज़त देने को भी मत कहना।
यह अनुभव मेरे कच्चे मन पर एक गहरी चोट थी।
बीच में पापा की तबियत ठीक नहीं थी तकरीबन 5 सालों तक उनका लगातार इलाज़ करवाने में बजट शब्द गुम  हो गया या दब गया भार में पता नहीं।  हमारे प्रिंसिपल हमें घर आकर लिवा ले गए, बीच में कुछ समय पढ़ाई छोड़ने की नौबत आने पर जब सभी बच्चे दिखे नहीं तो प्रिंसिपल सर का माथा ठनका और वो सीधे घर आकर अपने निश्छल और प्यार भरे मन से मेरे मन पर एक गहरी छाप छोड़ गए जिसे मै आज तक एक धरोहर समझकर जितना मुझसे जमता है गरीब बच्चों को पढने में मदद करने से पीछे नहीं हटती।
एक शिक्षक महोदय ने मुझसे कहा मै सिर्फ तुम्हे शाम में पढ़ाई में सहायता करूंगा, क्लास के बाद नीचे कमरे में रहना।  मैंने सारे लड़कों को बेंच के नीचे छुपकर इशारा करने पर चिल्लाने कहा साथ ही प्रिंसिपल सर से जल्द ही नीचे कमरे में सभी शिक्षकों के साथ आने कह दिया ।  महोदय सबसे अनजान आये और दरवाजा भी बंद किया। जैसे ही पीछे मुड़े दरवाजे पर एक दस्तक और दरवाजा खोलते ही सारे लड़कों और सामने प्रिंसिपल को देखते ही उनके होश उड़ गए।  महोदय रंगे हाथ पकडे गए और सिवाय नौकरी छोड़ने के दूसरा कोई चारा रहा नहीं।
आज भी जब मै सोचती हूं तो दंग रह जाती हूं अपनी समझ पर।
इस घटना ने मन पर फिर एक छाप छोड़ दी और मैंने लोगों के ऊपरी मुखौटे के पार देखना सीखा।
एक दिन यूं ही हमारी एक पड़ोसिन ने जो उस समय मुझसे बड़ी थीं और मै सिर्फ 15 की थी , अम्मा से मुझे बाज़ार भेजने का आग्रह किया तुरंत इन्होने हां कर दी और मै उनके भरोसे चल दी।  बाजार में जाते ही वो गायब हो गयीं और मै अकेली रह गयी। मैंने थोड़ी सब्जियां खरीदीं लेकिन हर जगह "चिल्हर नहीं" का जवाब मिला। एक महोदय जहां मै खरीदती वहां पैसे देते मेरे पीछे लगे रहे।  मैंने अनजान बनकर गुस्से से बात कर उन दुकानो में पैसे दिए और डर से तेज तेज कदम बढ़ाये।  उस पड़ोसिन का दूर तक अता पता नहीं था। ये इंसान भी मेरे पीछे ही लगे रहे। मैंने रास्ता पार करने के भीतर चाय , दूध पीने का आमंत्रण भी किया जिसे मैंने उपवास के बहाने मना कर दिया।  जैसे तैसे स्टेशन नजदीक आया और मेरी जान में जान आयी।  पहले दर्जे का डब्बा ही सामने था , मैंने झट से चढ़ कर ठंडी चैन की सांस ली लेकिन जैसे ही ट्रैन चली पीछे उसी आदमी को देख मेरे होश उड़ गए।
अब तो बेहद ही सतर्कता से दिमाग ने काम करना था।  मैंने देखा सिवाय हमारे दूसरा कोई था नहीं , मैंने बैग खिड़की वाली सीट पर रखा और बातों का क्रम जारी किया ताकि वो इंसान बना रहे।  जाहिर था वो अच्छा इंसान था नहीं लेकिन दूसरा कोई रास्ता भी नहीं बचा। मैंने पूछा , कहाँ जायेंगे अंकल और उसने कहा थाना , मैंने कहा मुझे भी वहीँ जाना है।  वो थोड़ा निश्चिन्त दिखा , वहां से 4 मिनट की दूरी मैंने तय करनी थी सो बाएं में उलझना जरूरी था ताकि मैं किसी आफत में न फंसूं।  मैंने दरवाजे पर ही खड़ा रहना बेहतर समझा लेकिन लगातार ये इंसान मुझसे भीतर आने कहता रहा जिसे मै नजरअंदाज करती रही।  थोड़ी देर में स्टेशन आ गया और मैंने झट से उतरकर पेपर स्टॉल पर जो लड़के ते उनसे सब बातें बता कर उसकी चम्पी कर दूसरी ट्रैन में मेरे बैग के साथ आने का अनुरोध किया।  थोड़ी ही देर में दोनों मेरे बैग के साथ उसकी मरम्मत कर लौट आये।
लगभग मेरी मां की उम्र के उस आदमी ने मेरी जान ही निकाल दी साथ ही एक सवाल भी मन में उठाया की एक बच्ची यदि होशियार न हो तो हर तरफ से उसको खतरों से बचाने कोई मिले ये जरूरी नहीं सो हर लड़की को अपनी सुरक्षा के तरीकों में माहिर होना ही बेहतर।
घर आकर मैंने अम्मा से कहा, आइन्दा हर ऐरे गैरे के साथ बाजार भेजने का ख्याल दिमाग से निकाल देना। यदि मेरी हिम्मत साथ न देती तो सोचो क्या होता ? भगवान का शुक्रिया अदा किया कि मुझे सही समय पर जूझने की ताकत तो दी। 

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